क्या गूगल हमारे दिमाग की जगह ले सकता है?

आज के जमाने में जब सारी जानकारी और सूचनाएं ऑनलाइन उपलब्ध हैं तो फिर आँकड़ों को याद करने की या सूचना हासिल करने की क्या ज़रूरत है। जवाब सीधा और सरल है, संदर्भ के लिये। प्रसिद्द अमेरिकी पेंटर कैनेथ नोलैंड ने एक बार हार्टफॉर्ड यूनिवर्सिटी में दी गई अपनी स्पीच में कहा था कि मेरे लिये संदर्भ या रेफरेंस वह कुंजी है, जो मुझे हर वस्तु के बारे में सोचने समझने की शक्ति देती है।


यह एक कला है, जो आपको जीवन का असल रूप दिखाती है। आपके आस-पास किस क्षेत्र में क्या घटित हो रहा है, उससे आपको रूबरू कराती है। यही वो खूबी है जो इंसान को मशीनों से अलग करती है। इसलिये यह कहना गलत नहीं होगा कि जानकारियों का अद्भुत भंडार गूगल सर्च इंजन इंसानी दिमाग की जगह नहीं ले सकता है। इस तथ्य को तुलनात्मक दृष्टि से देखना बिल्कुल गलत है, क्योंकि यह दोनों स्वतंत्र व्यवस्थाएं हैं। इनके बीच किसी तरह की प्रतियोगिता हो ही नहीं सकती।


उदाहरण के लिये गूगल पर किसी भी जानकारी को ढूंढने के लिये कुछ निश्चित प्रश्नों या संकेतो का डाटाबेस गूगल के सर्वर पर स्टोर रहता है। जब भी हम कोई शब्द टाइप करते है, गूगल उससे संबंधित सूचना को हमारे सामने पेश कर देता है। सूचना की उपलब्धता टाइप किये वाक्य के अनुसार सुनिश्चित की जाती है। अगर कोई सूचना सर्वर के डाटाबेस में उपलब्ध नहीं है तो उस समय कंप्यूटर स्क्रीन पर केन नॉट फाइंड सर्वर लिखा हुआ आ जाता है।


हमारा दिमाग गूगल द्वारा उपलब्ध कराई जानकारी में से अपने काम की जानकारी तुरंत अलग कर लेता है। दिमाग के सर्वर का कोई अंत नहीं है, क्योंकि वह सूचना के साथ संदर्भ को भी उपयोग में लाता है। यह साझा प्रयास दिमाग को गूगल से कई गुना आगे ले जाता है। संदर्भ का मतलब उस सूचना के बारे में पहले से मौजूद जानकारी में से उस समय क्या चीज सबसे ज्यादा ज़रूरी है। ब्रेन सिर्फ उसी इंफोर्मेशन को प्रयोग करता है। इसे हम ऐसे समझ सकते है कि दिमाग भाव के अनुसार नतीजे देता है, जबकि गूगल शब्दों के अनुसार नतीजे देता है। तभी तो गलत शब्द टाइप करते ही गूगल उसका सही शब्द बताते हुये कहता है डिड यू मीन। मशीन और इंसान की तुलना करने वाले तथ्यों को पीछे छोड़कर हमें गूगल का उपयोग एक बेहतरीन सूचना प्रदाता के रूप में करनी चाहिये, ना कि दिमाग को गूगल से विस्थापित करने के बारे में सोचना चाहिये।






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