अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मनुष्य की तरह भावनात्मक रूप में भी काम कर पायेगी
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का नाम आते ही दिमाग में एक ही बात आती है कि क्या कभी कोई मशीन इंसान की तरह भी सोच सकती है। अभी तक इस क्षेत्र में जितना भी रिसर्च हुआ है, उसे देखकर तो यही लगता है कि आगामी कुछ सालों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मनुष्य की तरह भावनात्मक रूप में भी काम कर पायेगी। एआई एक ऐसा सिस्टम जो रियल टाइम डाटा के अनुसार वर्क करता है। जिसे हम खतरनाक मिशन पर भेज सकते हैं, युद्द में इस्तेमाल कर सकते हैं, रोजमर्रा के काम करवा सकते हैं।
लेकिन मशीनों के ज्यादा इस्तेमाल से इंसान खुद को बेकार महसूस करने लग सकता है। इससे कई तरह की सामाजिक समस्याएँ पैदा हो सकती हैं। कॉन्शियस मशीनें विभिन्न प्रकार की कानूनी अड़चनें उत्पन्न कर सकती हैं। ऐसी मशीनें ज्यादा समझदार होने पर मनुष्य के ख़िलाफ बग़ावत भी खड़ी कर सकती हैं। डरावना माहौल पैदा कर सकती हैं। इस तरह के शोध पर कई सवाल खड़े होते हैं, कि इन मशीनों पर कौनसे नियम लागू होंगे, इन्हें किस लेवल तक कॉन्शियस पॉवर दिये जाये, इनकी कंट्रोलिंग और मॉनिटरिंग कौन करेगा।
ज्यादातर कंप्यूटर वैज्ञानिक यही सोचते हैं कि चेतना एक अद्भुत विशेषता है जो कि टेक्नॉलोजी के विकास के रूप में उभरकर सामने आएगी। कुछ लोगों का मानना है कि इसमें नई जानकारी असेप्ट करना, पुरानी जानकारी को एकत्रित करना तथा उसे फिर से रिकवर करना शामिल है। एक दिन ये मशीनें वो अद्वितीय चेतना होगी जो मानव की तुलना में अधिक सूचना इकट्ठा कर सकेगी, कई लाइब्रेरीज के जितना डाटा स्टोर कर सकेगी, मिलीसेकंड में विशाल डाटाबेस का उपयोग कर सकेगी। इसके सभी फैसले अधिक जटिल और अधिक तार्किक होंगे, किसी भी व्यक्ति की तुलना में ये कभी भी कोई भी गणना कर सकेगी।
वहीं दूसरी ओर, भौतिकविदों और दार्शनिकों का यह कहना है कि मानव व्यवहार के बारे में किसी मशीन या तर्क द्वारा गणना नहीं की जा सकती है। रचनात्मकता और आजादी इसके ऐसे अभिन्न अंग है जिनका मशीनीकरण प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करने जैसा है। चेतना के बारे में एक और थ्योरी क्वांटम फिजिक्स में मिलती है। ऑर्थोडॉक्स कोपेनहेगन व्याख्या के अनुसार, चेतना और भौतिकता एक ही वास्तविकता के दो पूरक पहलू हैं। जब कोई व्यक्ति भौतिक दुनिया के पहलू को देखता है या उस पर प्रयोग करता है, तो उस व्यक्ति के अंदर की कॉन्शियसनेस उसमें कुछ आवशयक बदलाव करती है। फिजिक्स में जिसे डिराइव करने का कोई फॉर्मूला नहीं है।
साइंटिफिक फिलोस्पर भी क्वांटम थ्योरी की इस बिग सी अवधारणा को प्राचीन दर्शन से प्रेरित मानते हैं। वेदों में चेतना के सिद्दांत को बहुत अच्छी तरह से समझाया गया है। उदाहरण के लिये सुप्रसिद्द भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन, जिनका 1920 में 32 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था। उन्होंने मैथ्स के कई ऐसे फॉर्मूले दिये, जो उनके समय से काफी आगे के थे। उन्होंने यह दावा किया था, कि जब वो सो रहे थे तब एक देवी ने उन्हें सपने में आकर सब फार्मूले बताये थे। बुद्द के अनुसार चेतना का उद्भव शून्य है। यह संभव है कि कॉन्शियसनेस को अगर इंसानी दिमाग़ की स्वसंगठित प्रणाली के अनुसार प्रोगाम किया जाये तो वर्तमान मशीनें काफी हद तक कम हो जायेगी तथा प्रभावशाली परिणाम सामने आयेंगे।

लेकिन मशीनों के ज्यादा इस्तेमाल से इंसान खुद को बेकार महसूस करने लग सकता है। इससे कई तरह की सामाजिक समस्याएँ पैदा हो सकती हैं। कॉन्शियस मशीनें विभिन्न प्रकार की कानूनी अड़चनें उत्पन्न कर सकती हैं। ऐसी मशीनें ज्यादा समझदार होने पर मनुष्य के ख़िलाफ बग़ावत भी खड़ी कर सकती हैं। डरावना माहौल पैदा कर सकती हैं। इस तरह के शोध पर कई सवाल खड़े होते हैं, कि इन मशीनों पर कौनसे नियम लागू होंगे, इन्हें किस लेवल तक कॉन्शियस पॉवर दिये जाये, इनकी कंट्रोलिंग और मॉनिटरिंग कौन करेगा।
ज्यादातर कंप्यूटर वैज्ञानिक यही सोचते हैं कि चेतना एक अद्भुत विशेषता है जो कि टेक्नॉलोजी के विकास के रूप में उभरकर सामने आएगी। कुछ लोगों का मानना है कि इसमें नई जानकारी असेप्ट करना, पुरानी जानकारी को एकत्रित करना तथा उसे फिर से रिकवर करना शामिल है। एक दिन ये मशीनें वो अद्वितीय चेतना होगी जो मानव की तुलना में अधिक सूचना इकट्ठा कर सकेगी, कई लाइब्रेरीज के जितना डाटा स्टोर कर सकेगी, मिलीसेकंड में विशाल डाटाबेस का उपयोग कर सकेगी। इसके सभी फैसले अधिक जटिल और अधिक तार्किक होंगे, किसी भी व्यक्ति की तुलना में ये कभी भी कोई भी गणना कर सकेगी।
वहीं दूसरी ओर, भौतिकविदों और दार्शनिकों का यह कहना है कि मानव व्यवहार के बारे में किसी मशीन या तर्क द्वारा गणना नहीं की जा सकती है। रचनात्मकता और आजादी इसके ऐसे अभिन्न अंग है जिनका मशीनीकरण प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करने जैसा है। चेतना के बारे में एक और थ्योरी क्वांटम फिजिक्स में मिलती है। ऑर्थोडॉक्स कोपेनहेगन व्याख्या के अनुसार, चेतना और भौतिकता एक ही वास्तविकता के दो पूरक पहलू हैं। जब कोई व्यक्ति भौतिक दुनिया के पहलू को देखता है या उस पर प्रयोग करता है, तो उस व्यक्ति के अंदर की कॉन्शियसनेस उसमें कुछ आवशयक बदलाव करती है। फिजिक्स में जिसे डिराइव करने का कोई फॉर्मूला नहीं है।
साइंटिफिक फिलोस्पर भी क्वांटम थ्योरी की इस बिग सी अवधारणा को प्राचीन दर्शन से प्रेरित मानते हैं। वेदों में चेतना के सिद्दांत को बहुत अच्छी तरह से समझाया गया है। उदाहरण के लिये सुप्रसिद्द भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन, जिनका 1920 में 32 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था। उन्होंने मैथ्स के कई ऐसे फॉर्मूले दिये, जो उनके समय से काफी आगे के थे। उन्होंने यह दावा किया था, कि जब वो सो रहे थे तब एक देवी ने उन्हें सपने में आकर सब फार्मूले बताये थे। बुद्द के अनुसार चेतना का उद्भव शून्य है। यह संभव है कि कॉन्शियसनेस को अगर इंसानी दिमाग़ की स्वसंगठित प्रणाली के अनुसार प्रोगाम किया जाये तो वर्तमान मशीनें काफी हद तक कम हो जायेगी तथा प्रभावशाली परिणाम सामने आयेंगे।

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